रविवार, 21 मार्च 2010

जीवन की परिभाषा

जीवन को हर पल
जीते रहना
कहना सरल है
मुश्किल है जीना
चाहो चांद को
खो जाती है चादंनी भी
फ़िर आने का गम सताता है
वरना छोड दे जिन्दगी भी “

“यू तो जीने को जी रहा हू मै
अमृत मिले या मिले गरल
पी रहा हू मै
पर जिंदगी उदास है..
ये जीवन सफर है , मंजिल मौत
हर किसी को जीना अपना वनवास है”


“एक दिन
मेरी जिन्दगी ने मुझ से यू कहा ”
कही भी कहो कुछ भी कहो
पर यू न कहॊ
कि जिन्दगी उदास है
तुम ढूढो तो खुशिया बहुत
ना ढूंढो तो वनवास है

“मै तो चाहती हूं लगाने
तेरी जीवन मे खुशियो भरे शामियाने
पर ढेरो गम सीने मे छूपाये
तुझे तो पसन्द ही है विराने ”

“मै तो चाहती हूं सुनाना
तुझे खुशियो भरी रुबाईया
पर क्या करु तुझे तो
पसन्द ही है मातमी शह्ननाईया

“जब जब मैने चाहा
तू छुये उचाँईया
तूने हिम्मत तोड ली
ढूढ ली गहराईया

“जब भी साहस की बात हुई
जब तूने किस्मत को मान दिया
हम पहुच चुके थे मंजिल पर्
पर हार का दामन थाम लिया ”

“मै रोई बिलबिलाई
मन मसोस कर रह गई
कुछ कर गुजरने की चाहत
आसूओ मे बह गई”

“किस् से करु गिला शिकवा जब
तूने ही दम तोड दिया
मै तो लडती आखिर तक
पर साथ जो तूने छोड दिया “

“हर निर्णय मे संग हू तेरे
हर हाल मे साथ निभाउगी
परिहास उडाती नजरो मे
पर मै कैसे जी पाउगी”

“अभी भी गुजरा वक्त नही
क्या तुझमे सामर्थ्य नही ?
क्यो दीन हीन बन रोता है
क्यो मानव जनम को खोता है ?”

“ये जीवन है संघर्ष तेरा
तू ढूढ यहा विश्राम नही
राह बना तू अपनी खुद
बनजा मेरा अभिमान यही ”



“तू टूट गया हो भले जग से
मेरा तो भरोसा है तुझ मे
उठ जाग,खडा हो झाक जरा
अपने सोये अन्तर्मन मे ”

“जब मै साथ चलू तेरे
तू नही अकेला है जग मे
विप्लव मे भी बच जाते है
जब द्र्ढता हो अपने मन मे”

“उठाओ कुदाल हाथो मे
बना लो रास्ता अपना
कदमो तले होगी मन्जिल
होगा सच हर-इक सपना “

“ये बस इक शपथ लेलो
न रोयेगे कभी अब हम
देखे तो जरा हम भी
खुदा देता है कितने गम”

“देखे तो जमाने तू
देता है कितने नासूर
गिरेगे पर ,उठेगे फिर
पहुचेगे मंजिल पर जरुर
तू ढूढ बहाने गिराने के
मुझे है फ़तेह का सरुर”

कवि: अरुण

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