
एक कविता जो मुझे प्रेरणा देती है
हम तो बांस हैं,
जितना काटोगे,उतना हरियायेंगे.
हम कोई आम नहीं
जो पूजा के काम आयेंगे
हम चंदन भी नहीं
जो सारे जग को महकायेंगे
हम तो बांस हैं,
जितना काटोगे, उतना हरियायेंगे.
बांसुरी बन के,
सबका मन तो बहलायेंगे,
फिर भी बदनसीब कहलायेंगे.
जब भी कहीं मातम होगा,
हम ही बुलाये जायेंगे,
आखिरी मुकाम तक साथ देने के बाद
कोने में फेंक दिये जायेंगे.
हम तो बांस हैं,
जितना काटोगे ,उतना हरियायेंगे.
राजेश्वर दयाल पाठक
4 टिप्पणियां:
बहुत खूब पाठक जी को हार्दिक शुभ कामनायें
बहुत खूब लिखा है बास के सम्मान मे.
palney se le kar Arthi tak hazaron kaam mein aata hai Bans. Ek Sunder Kavita ke liye Aapko Badhai
aaj kaun hai jo baans hona chahta hai??? jabki ye dunia baans ke bina chal bhi sakti hai kya?
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