अनूप जलोटा के भजन किस के मन को नहीं बांध लेते। ये भजन हमने पहली बार करीब बारह साल पहले सुना था जब हमारे पड़ौसी ने गणपति जी का अपने घर स्वागत किया। हम ऐसा बंधे इस भजन में कि रसोई में सब्जी बर्तन में नीचे लग गयी। शा्म को पड़ौसन से बहुत पूछा कि किसका गाया भजन था लेकिन जवाब नदारत थे। बड़ी कौफ़्त होती है जब जवाब में सुनते हैं 'पता नहीं'। खैर ढूंढ तो लिया अनूप जलोटा के हर भजन का आनंद लिया। अनूप जी की गायन शैली और भजनों के शब्द सब हमें बांध लेते हैं । सुना तो आप ने भी कई बार होगा, एक बार और सही मेरे साथ…।:)
1 टिप्पणी:
..बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..
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